भोपाल। संविधान दिवस के अवसर पर मध्यप्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने देशवासियों को शुभकामनाएँ देते हुए वर्तमान लोकतांत्रिक परिस्थितियों पर गंभीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि आज संविधान की मूल भावना से खिलवाड़ हो रहा है, जनभावनाओं को दबाया जा रहा है और चुनाव आयोग जैसी लोकतांत्रिक संस्थाओं की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न खड़े हो रहे हैं, इसके बावजूद लोग खामोश हैं।
सिंघार ने कहा कि भारत का संविधान केवल शासन की रूपरेखा नहीं, बल्कि देश की आत्मा है, जिसकी मूल भावना—समानता, न्याय, स्वतंत्रता और बंधुत्व—अनेक चुनौतियों के बीच कमजोर होती दिखाई दे रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि राजनीतिक सत्ता का केंद्रीकरण और संस्थाओं की स्वायत्तता में कमी लोकतंत्र की स्वस्थ संरचना को प्रभावित कर रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा कि आज आम नागरिक की आवाज़ धीमी पड़ती जा रही है। आलोचना को असहमति के बजाय विरोध के रूप में देखा जा रहा है। मीडिया की स्वतंत्रता सीमित हो रही है और सोशल मीडिया पर भय का माहौल लोकतांत्रिक चेतना को कमजोर कर रहा है।
चुनाव आयोग की भूमिका पर गंभीर प्रश्न
नेता प्रतिपक्ष ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग भारतीय लोकतंत्र का प्रहरी है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उसकी स्वायत्तता को लेकर शंकाएँ बढ़ी हैं।
उनके अनुसार, यदि चुनाव आयोग पर जनता का विश्वास डगमगाता है, तो पूरी चुनाव प्रक्रिया का नैतिक आधार कमजोर हो जाता है।
सिंघार ने कहा कि लोकतंत्र की विश्वसनीयता जनता की भागीदारी और सतत् जागरूकता से बनती है। परंतु वर्तमान में बड़ा वर्ग मौन है—जो भय, उदासीनता या असहायता का परिणाम हो सकता है। यह मौन लोकतंत्र के लिए खतरनाक है, क्योंकि सत्ता की मनमानी को बढ़ावा देता है।
“लोकतंत्र केवल मतदान नहीं, निरंतर संवाद और सवालों से मजबूत होता है”
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र केवल वोट देने से मजबूत नहीं होता, बल्कि जनता की निरंतर सहभागिता, बहस और प्रश्न उठाने के अधिकार से जीवित रहता है।
“जब नागरिक चुप रहते हैं, तो यह मौन धीरे-धीरे लोकतंत्र को केवल औपचारिकता में बदल देता है,” उन्होंने कहा।
सिंघार ने कहा कि लोकतंत्र अनेक संघर्षों की उपज है और इसे जीवित रखने के लिए समाज, मीडिया, न्यायपालिका और जनता को अपनी भूमिकाओं पर पुनर्विचार करना होगा।
संविधान की रक्षा का संकल्प दोहराने की अपील
उमंग सिंघार ने सभी नागरिकों से आह्वान किया कि वे संविधान में निहित मूल्यों—समानता, न्याय, स्वतंत्रता और बंधुत्व—की रक्षा के लिए एकजुट हों और लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वतंत्रता बनाए रखने में अपनी भूमिका निभाएँ।
